छत्तीसगढ़: हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के फैसले पर रोक लगाई, प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिलेगा

बिलासपुर (एजेंसी) | सोमवार को बिलासपुर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार की तरफ से 22 अक्टूबर 2019 को जारी अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है। इस अधिसूचना के खिलाफ एक जनहित याचिका और एक रिट याचिका दायर हुई थी। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान 2 दिसंबर को शासन की तरफ से महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा ने अधिसूचना तैयार करने में गलती होना स्वीकार किया था।
इस गलती को सुधार करने के लिए कोर्ट ने एक सप्ताह का समय दिया था, इस पर कोई खास अमल नहीं होने पर चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन व जस्टिस पीपी साहू की खंडपीठ ने अधिसूचना पर रोक लगा दी। साथ ही सरकार को नियमानुसार दो माह में फिर से नियम बनाने के आदेश दिए हैं।
इस आदेश का प्रभाव सामान्य आरक्षण पर नहीं पड़ेगा
रायपुर के रहने वाले एस. संतोष कुमार ने अधिवक्ता योगेश्वर शर्मा के माध्यम से जनहित याचिका और बिजली विभाग में पदस्थ सर्किल इंजीनियर विष्णु प्रसाद तिवारी व गोपाल सोनी ने अधिवक्ता विवेक शर्मा व प्रफुल्ल भारत के माध्यम से याचिका प्रस्तुत की थी। इसमें शासन के आदेश को चुनौती देते हुए अधिसूचना के पालन पर रोक लगाने की मांग की थी।
पिछली सुनवाई में बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट के एम. नागराजन व अन्य और जनरल सिंह विरुद्ध लक्ष्मी देवी के मामले में दिए फैसले व दिशा निर्देश के अनुरूप सरकार आरक्षण में क्रीमीलेयर के सिद्धांत व सभी विभागों के एससी और एसटी कर्मचारियों के आंकड़े को एकत्रित करने के लिए एक सप्ताह का समय लिया था।
क्रीमीलेयर के सिद्धांत के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को आरक्षण का लाभ केवल एक ही बार दिया जा सकता है। सोमवार को मामले की सुनवाई के दौरान एक बार फिर याचिकाकर्ताओं की तरफ से आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किए जाने की बात कही गई। साथ ही बताया गया कि राज्य शासन की तरफ से जारी नियम में एससी वर्ग को 13 प्रतिशत व एसटी वर्ग को 32 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है, जो संविधान में मिले अधिकार का उल्लंघन है।
राज्य शासन के नियम को छत्तीसगढ़ पावर जेनरेशन कंपनी ने 31 अक्टूबर को बिजली विभाग के कर्मचारियों पर लागू करते हुए प्रमोशन दिया है। सुनवाई के दौरान शासन से जवाब प्रस्तुत करने कहा गया था, मामले में शासन का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने आरक्षण अधिसूचना के पालन पर रोक लगा दी।
नियम बनाने सरकार को दो माह का समय
शरद श्रीवास्तव की याचिका पर 4 फरवरी 2019 को हाईकोर्ट ने आरक्षण नियम को निरस्त कर दिया था। साथ ही सरकार को नियमानुसार दोबारा नियम बनाने की स्वतंत्रता दी गई थी। सरकार द्वारा पुन: बिना सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन किए नियम बनाया गया, इसे चुनौती दी गई। कोर्ट ने आरक्षण नियमों के अनुसार प्रमोशन देने पर उच्च न्यायालय ने दो माह की रोक लगाते हुए फिर से नियम बनाने कहा है। जनवरी के दूसरे सप्ताह में मामले की सुनवाई होगी। यह रोक सामान्य श्रेणी के पदोन्नति पर लागू नहीं होगी।